नागरी निठुर मान गह्यौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट नारायन


नागरी निठुर मान गह्यौ।
पीठि दै रिसकाँपि बैठा, फिरि न उतहि चह्यौ।।
स्याम मन अनुमान कीन्हौ, रिसनि व्याकुल नारि।
तनकही रिस खोइ डारो, यह प्रतिज्ञा धारि।।
सखी एक सुभाव अपनै, गए ताकै गेह।
यह चरित सब कह्यौ तासो, चतुर लख्यौ सनेह।।
गई आतुर नारि ताकै, लख्यौ नैननि कोर।
चकृत बाला नंदसुत बिनु लह्यौ हठ को छोर।।
भुजा गहि कही कियो का रिग, सही ब्रज की ग्वारि।
'सूर' प्रभु सौ मान कीन्ही, हृदय देखि बिचारि।।2693।।

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