नागरि यह सुनि कै मुसुकानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गूजरी


नागरि यह सुनि कै मुसुकानी।
को जानै पिय महिमा तुम्हरी, नैननि चितै लजानी।।
मै बैठी प्रतिबिंब बिलोकति, अपनै सहज सुभाइ।
आपुन कहा अचानक आए, तुव गति लखी न जाइ।।
इक सुंदर दूजै अति नागर, तीजै कोकप्रवीन।
'सूरदास' प्रभु अबही तौ तुम, जसुमतिसुवन नवीन।।2207।।

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