नागरि मन गई अरुझाइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली



नागरि मन गई अरुझाइ।
अति बिरह तनु भई ब्याकुल, घर न नैंकु सुहाइ।।
स्याम सुंदर मदन मोहन, मोहिनि सी लाइ।
चित्त चंचल कुँवरि राधा, खान-पान भुलाइ।।
कबहुँ विहँसति, कबहुँ बिलपति, सकुचि रहति लजाइ।
मातु-पितु कौ त्रास मानति, मन बिना भई वाइ।।
जननि सौं दोहनी माँगति, बेगि दै री माइ।
सूर प्रभु कौं खरिक मिलिहौं, गए मोहिं बुलाइ।।678।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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