नागरि नागरपंथ निहारै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान


नागरि नागरपंथ निहारै।
उदै वालससि अस्त भयौ रवि, जिय जिय यहै बिचारै।।
किधौ अबही आवत ह्वै है, की आबन नहि पैहै।
मातुपिता की त्रास उतहि, इत मेरे घरहि डरैहै।।
अंगसिंगार स्यामहित कीन्हे, बृथा होन ये चाहत।
'सूर' स्याम आवै की नाही, मन मन यह अवगाहत।।2028।।

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