नहीं शक्ति, सामर्थ्य न कुछ भी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग तैलंग - तीन ताल


नहीं शक्ति, सामर्थ्य न कुछ भी, नहीं योग्यता, नहीं पदार्थ।
नहीं भाव कुछ, त्याग न कुछ भी, भरा मन्द जीवन में स्वार्थ॥
तन-मन मलिन, न शोभा-सुषमा, नहीं कहीं सुन्दरता-लेश।
कैसे क्या देती तुमको मैं! दीन हीन अति, तुम सर्वेश॥
सेवा का उपकरण न कुछ भी, नहीं हृदय में कुछ भी चाव।
तो भी मान रहे तुम सेवा, परम विचित्र तुम्हारा भाव॥
गुण-वर्णन करते न अघाते, देते बार-बार समान।
बारंबार ऋणी बनते तुम, षड्‌‌-‌ऐश्वर्य-पूर्ण भगवान॥
मेरी सेवा से ही चलते मानो सभी तुम्हारे काम।
मुझसे सेवा लिये बिना तुम पाते नहीं पलक विश्राम॥
मेरे लिये तुम्हारा ऐसा है कुछ शुचि अचिन्त्य अनुराग।
देख रहे इससे तुम मेरी हर कृति में सेवा बड़भाग!

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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