नहीं मान-धन, कीर्ति-भोग की -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

अभिलाषा

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राग भैरवी - ताल कहरवा


नहीं मान-धन, कीर्ति-भोग की, नहीं मोक्ष की किंचित चाह।
नहीं अयश-‌अपमान, दुःख की, तनिक नरक की भी परवाह॥
सदा-सर्वदा एकमात्र तुम करो हृदय में ही अधिवास।
रहो दीखते बाहर भी सर्वत्र सदा करते मृदु हास॥
पाते रहें चित्त-दृग दोनों एक तुम्हारा ही संस्पर्श।
इह-पर की फिर लाभ-हानि से कभी न होगा हर्ष-‌अमर्ष॥
आयें-जायँ यथेच्छ कहीं भी, कुछ भी, कभी-मुक्ति या बन्ध।
एक तुम्हारे सिवा न मेरा रहा कहीं भी कुछ सम्बन्ध॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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