नहीं नापाक, नालायक खलक में -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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तर्ज गजल - ताल दादरा


नहीं नापाक, नालायक खलक में मुझसा को‌ई और,
भरा लाखों गुनाहों से दिखाऊँ मुँह तुझे कैसे?
इबादत की नहीं तेरी, भूलकर भी कभी मैंने,
सताया तेरे बंदों को, सामने आऊँ मैं कैसे ?
मुहब्ब्त जालिमों से की जोड़ ईखलास[1] पुरे दिलसे,
किया ईख्तलाफ[2] नेकों से, बताऊँ क्या तुझे कैसे?
डराया बेगुनाहों को, औ लूटा बेबसों को खूब,
मिटायी आब आदिलकी, करूँ अब क्या, कहो, कैसे?
छोड़ खिदमत खुदा! तेरी, करी अख्तियार बेशर्मी,
बेवफा बन करी चुगली, बचाऊँ अब, कहो, कैसे?
मिटा इन्सानियत सारी, बना खूँखार बेहद मैं,
जान ली बेजुबानों की, डरूँ अब मैं नहीं कैसे?
बितायी आशना‌ई में उम्र, हो बेहया पूरा,
मागूँ अब किस तरह माफी, सजासे अब बचूँ कैसे?
रहमदिल, ऐ मेरे मालिक! करो अब परवरिश मेरी,
छोड़ परवरके दरको मैं जाऊँ अब गैर पै कैसे?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मेल-मिलाप
  2. विरोध

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