नहीं तनिक भी लज्जा करते -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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तर्ज लावनी - ताल कहरवा


नहीं तनिक भी लज्जा करते, करते नहीं तनिक संकोच।
ध्यान नहीं देते कदापि वे को‌ई कहे भला या पोच॥
मेरे वे सर्वस्व एक ही, वे ही मेरे इह-परलोक।
गति-मति-रति, मन-जीवन वे ही, एक मात्र वे ही आलोक॥
इस मेरी बाह्यस्नयन्तर स्थिति का उनको है पूरा जान।
इसीलिये वे मुझ पर सदा निछावर रहते हैं भगवान॥
कैसे भी मैं, क्षण भर भी, इस स्थिति का त्याग न कर पाती।
सहते उन्हें देख पर-निन्दा-श्रम, जलती मेरी छाती॥
यद्यपि उनको होता अति सुख मुझे देखकर सुखी अपार।
पर मुझको लगता, वे सहते कष्ट नित्य अति प्राणाधार॥
कैसे, मैं क्या करूँ, मिटे जिससे यह प्रियका कष्ट तुरंत।
मेरे कारण होने वाले कष्ट का हो कैसे अंत’॥
इस दुश्चिन्ता की ज्वाला से जला हृदय, वे हुर्ईं अचेत।
स्वर्ण-देह वे पड़ीं भूमि पर मलिन-बदन सौन्दर्य-निकेत॥
प्यारे वहीं खड़े थे, गिरते देख तुरंत ले लिया गोद।
सिर सहलाने लगे स्व-कर मुखचन्द्र देखने लगे समोद॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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