नहीं एक भी सद्‌‌गुण मुझ में -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

Prev.png
राग भीमपलासी - ताल कहरवा


नहीं एक भी सद्‌‌गुण मुझ में, नहीं प्रेम का किंचित्‌‌ लेश।
भरा हृदय अगणित दोषों से, रस, विरहित, कलुषित सविशेष॥
लेती रही सदा सुख तुमसे मैं नित नव-नव अतुल अपार।
दे न सकी मैं कभी तुम्हें सुख-कण क्षणभर, हे परमोदार!
रोती रही सदा इस दुख से, रोती नित्य रहूँगी, श्याम!
कभी देख तव मलिन चन्द्र-मुख बरबस लूँगी आँसू थाम॥
सुखी देखना तुम्हें चाहती, नित्य प्रफुल्लित मुख सुख-सार।
इसीलिये दुख से रोती भी, करती मैं सब सुख स्वीकार॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः