नव-निकुञ्ज में कृष्ण प्रेष्ठतम थके शरीर पधारे आज।
श्रान्त कलेवर था, सुभालपर श्रम-कण-बिन्दु रहे थे भ्राज॥
राधा श्रमित देख प्रियतम को हुई दुखी, कर मधु मनुहार।
सुला दिया कोमल कुसुमों की शय्या पर प्रियको, दे प्यार॥
करने लगी तुरत सुरभित पंखे से, उनको मधुर बयार।
श्रम कम हुआ, स्वेद-कण सूखे, राधा को सुख हुआ अपार॥
करने लगी पाद-संवाहन मृदु कर-कमलों से अति स्नेह।
श्रान्ति मिटी, मोहन-मुख पर बरसा मृदु-मधुर हास्य का मेह॥
राधाने चाहा-’प्रियतम अब कर लें निद्रा को स्वीकार।
सो जायें कुछ काल, बढ़े जिससे शरीरमें स्फूर्ति-सँभार’॥
नेत्र निमीलित हुए श्याम के, सोये सुख की नींद मुकुन्द।
शायित प्रियको देख परम सुख, बढ़ा अमित राधा-आनन्द॥