नवल स्याम, नवला श्री स्यामा।
दोऊ राजत बाहाँजोरी, चले जात ब्रज धामा।।
या छबि को उपमा दीवे कौ, त्रिभुवन नहीं उपामा।
दामिनि घन पटतर दीजै क्यौ, सकुचत कवि लिये नामा।।
सुधा सरीर परस्पर दोऊ, सुखदायक दिन जामा।
'सूरदास' नागरि नागर प्रभु, जीते रति अरु कामा।।2181।।