नवल निकुंज नवल रस दोऊ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग ललित


नवल निकुंज नवल रस दोऊ, राजत है अतिसय रँग भीने।
कुसुमनि सेज भोर उठि आवत, आलस जुत असनि भुज दीने।।
अरुन नैन कुच रेष बिराजति, स्रम जल बसन पलटि तनु लीने।
'सूरज' प्रभु-प्यारी-सुख निरखति, सखिनि सहित ललिता दृग दीने।।2176।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः