नवल नागरि, नवल नागर किसोर मिलि, कुंज कोमल कमल-दलनि सज्या रची।
गौर सांवल अंग रुचिर तापर मिले, सरस मनि मृदुज कंचन सु आभा खची।।
सुंदर नीबी बंध रहति पिय पानि गहि पीय के भुजनि मैं कलह मोहन मची।
सुभग श्रीफल उरज पानि परसत, हुंकरि, रोषि, करि गर्व, दृग भंगि भामिनी लची।।
कोक-कोटिक-रभस, रसिक हरि सूरज बिबिध कल माधुरी किमपि नाहिंन बची।
प्रान-मन-रसिक, ललितादि, लोचन-चषक, पिबति मकरंद संखरासि-अंतर-सची।।1191।।