नमो नमस्ते बारंबार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


नमो नमस्ते बारबार। मधुसूदन गोविंद मुरार।।
माया मोह लोभ अरु मान। ये सब नर कौ फाँस समान।।
काल सदा सर साँधे फिरै। कैसै नर तब सुमिरन करै।।
तुम निरगुन अद्वै निरँकार। सुर अरु असुर रहे पचिहार।।
तुम्हरौ मरम न जानै सार। नर बपुरौ क्यौ करै बिचार।।
अरुन असित सित पीतऽनुहार। करत जगत मैं तुम अवतार।।
सो जग क्यौ मिथ्या कहि जाइ। जहाँ तरै तुम्हरे गुन गाइ।।
प्रेम भक्ति बिनु मुक्ति न होइ। नाथ कृपा करि दीजै सोइ।।
और सकल हम देख्यौ जोइ। तुम्हरी कृपा होइ सो होइ।।
वह तन है प्रभु जैसै ग्राम। जामै सब्दादिक बिस्राम।।
अधिष्ठात्र तुम हौ भगवान। जान्यौ जात न तुम्हरौ स्थान।।
तुम स्वासा तै पुहमी नाथ। स्वास रूप हम लेख्यौ न जात।।
जगत पिता तुमही हौ ईस। यातै हम बिनवत जगदीस।।
तुम सरि दुनिया और न आहि। पटतर देहिं नाथ हम काहि।।
सुत जैसै वेदस्तुति गाई। तैसै ही मैं कहि समुझाई।।
‘सूर’ कह्यौ श्रीमुख उच्चार। कहै सुनै सो तरे भाव पार।। 4301।।

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