नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
32. मधुमंगल-माखन चोरी
गोप का घर और उसमें गोरस नहीं? हम सब गये कोकिला के भवन में और कुछ ऐसा नहीं मिला जिससे मैं भी कुछ भोग लगा सकूँ। यह बहुत चतुर है। कहीं ऐसा छिपाया होगा कि हममें-से कोई ढूँढ न सके। अब हमको क्रोध नहीं आवेगा? अकेले कन्हाई को कोई दोष क्यों दे, क्रोध सभी को आया, पर और कर भी क्या सकते थे इसके अतिरिक्त कि सब भाण्डों को हम सबने भग्न कर दिया। इस भड़ा-भड़ में भी कम आनन्द नहीं आया। कन्हाई तो कोकिला के पालने में पड़े शिशु के ऊपर झुका था। कह रहा था। 'तेरी माता बहुत कृपण है। तुझे दूध भी भरपेट नहीं देती होगी। उठ! हमारे साथ चल! मैं तुझे माखन खिलाऊँगा- बहुत मीठा माखन!' शिशु हँस रहा था, किलक रहा था और दोनों कर उठाकर श्याम के चन्द्रमुख को पकड़ने का प्रयत्न कर रहा था। कोकिला का ही तो दोष है कि उसी समय आ कूदी। यमुना-जल लेने गयी थी तो कुछ देर और वहाँ नहीं रुक सकती थी? आ भी गयी तो क्या विपत्ति आयी थी कि दूर से चिल्लाने लगी- 'अरे! शिशु के समीप क्या कर रहा है? क्या करने आये हो तुम सब यहाँ? कोई ऐसे चिल्लायेगी तो श्याम भागेगा नहीं? मोहन भागे तो हम सब क्या करने को वहाँ बैठे रहे? कन्हाई किसी को सखा स्वीकार कर ले, उसे अपने साथ आने को आमन्त्रित करके, अपना चन्द्रमुख दिखलाकर भाग जाये तो जो साथ जाने में असमर्थ होगा वह शिशु हो या वृद्ध, रोवेगा ही- वह फूट-फूटकर, हिचक-हिचककर रोवेगा, इसमें आश्चर्य क्या? कोकिला कहती है- 'श्याम उसके शिशु को चिकोटी काटकर रुला भागा!' अपने शिशु का शरीर भी देखा उसने? कनूँ के किसलय से भी कोमल कर- वह चिकोटी भी काटे तो शिशु को कष्ट होता? वह तो किसी को कष्ट दे पाता ही नहीं। कष्ट तो देता है- अकल्पनीय कष्ट देता है इस नन्दनन्दन का समीप से भाग जाना- इसका वियोग और अपने शिशु के लिए यह वियोग तो कोकिला ने स्वयं बुला लिया था। सायंकाल ही हमारी मन्त्रणा हो गयी थी- 'सद्य नवनीत बहुत स्वादिष्ट होता है। अँधेरे में ही चलेंगे कल।' |
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