नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
32. मधुमंगल-माखन चोरी
'नन्द बाबा के घर क्या माखन-दधि का अभाव है कि मेरा सखा तेरे घर माखन खाने आयेगा?' मैं केवल चिढ़ाता हूँ। मुझे पता है कि मेरा मित्र अवश्य आयेगा इसके घर। वह है ही ऐसा- जो हृदय से उसे पुकारता है, उसके यहाँ गये बिना रह नहीं सकता; किंतु यह मुझे अब मोदक देकर मनावेगी। मैं क्यों न कहूँ- 'यशोदा मैया कोई कृपण है कि कन्हाई और उसके सखा किसी और के घर जायँगे। हम सब जितना खायें-लुढ़कायें, मैया उतनी प्रसन्न होती है। वह मनुहारें करती थकती हैं हममें से एक-एक की। कनूँ कहाँ अकेला कुछ खाता है। 'लाल! जानती हूँ कि ब्रजराज कुमार के लिए अभाव सम्भव नहीं। ब्रजेश्वरी की चले तो वे हम सब गोपियों, गोपों को नित्य अपने यहाँ ही खिलावें।' यह गोपी बिचारी रोने ही लगी- 'लेकिन तेरा सखा मल्लिका के घर खा अाया, तू कृपा करे तो मेरा माखन भी एकाध दिन उसे भायेगा!' मुझे कहने की, कृपा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मेरा कन्हाई कृपा का ही धनी भाव है और वह जानता है कि किसका अंतर कितना आतुर है उसके आगमन के लिए। मैं तो केवल उसके साथ आऊँगा। ब्राह्मण पहिले भोग लगाने को उसके साथ भी तो चाहिये। 'आज अभी चुपके चले-चलो उत्पला के घर। हम सब वहाँ माखन खायेंगे, दही पियेंगे!' श्याम ने सबेरे ही सखाओं से मन्त्रणा की- 'वह अभी गोष्ठ में गोबर उठाने में लगी होगी। आवेगी तो हम सब भाग निकलेंगे!' 'तू चोरी करेगा?' यह अर्जुन बहुत सीधा है। इसकी समझ में इतनी बात भी नहीं आती कि भोजन में चोरी क्या? सृष्टिकर्त्ता ने उदर बनाया, उसमें क्षुधा बनायी और सृष्टि में भोज्य पदार्थ बनाये। भूख लगे तो भरपेट खा लो- इतना तो सबका स्वत्व है। इसमें सोचना क्या? कुछ उठाकर ले जायँ कल के लिए तब वह चोरी होती है। मैं यह बात कहता हूँ तो गोपियाँ-गोप हँसते हैं। कोई महामुनि मुझसे शास्त्रार्थ कर ले! लेकिन गोप कहाँ शास्त्र पढ़ते हैं। ये तो कह देंगे- 'तू अपना पाण्डित्य रहने दे!' 'मैया सुनेगी तो मारेगी!' अर्जुन डरता है। मैया को कहीं क्रोध आता है? वह क्यों मारेगी? हम सब माखन ही तो खाना चाहते हैं। मैया के यहाँ न खाया, उत्पला के यहाँ खा लिया। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज