नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
29. अभिनन्द ताऊ-सेवा-सम्मान
पूजा उन्हें भी इस नन्दराय के गोष्ठ में ही करनी है। भगवान शालिग्राम का रत्नपीठ वे प्रतिदिन जानबूझ-कर थोड़ी दूर छोड़ देते हैं और स्वयं आसन पर बैठकर तब आदेश देते हैं। श्याम दौड़ जाता है। बैठकर दोनों करों से पीठ को उठाकर मस्तक पर रखता है और तब उठता है किसी प्रकार। दोनों हाथों से पीठ को पकड़े अपने बड़े ताऊ के समीप आता है। कितना अरुण हो जाता है इसका मुख पीठ के भार से। कमल-मुख पर स्वेदक-कणिकाएँ झलकने लगती हैं। बड़े भाई की ही नहीं, हम सबकी दृष्टि तो इसी के मुख पर लगी रहती है। बड़े भाई हाथ बढ़ाकर पीठ ले लेना चाहते हैं; किंतु यह कहाँ मानता है। तनिक पीछे हट जाता है- 'मैं रखूँगा।' नीचे बैठकर पीठ को उतारकर अपने हाथों ताऊ के सम्मुख रखकर कितना प्रसन्न होता है। यह तो सेवा, बड़ों का सम्मान सम्भवत: माता के उदर से ही सीखकर आया है। इसे कहाँ आवश्यकता है इस प्रशिक्षण की। उस दिन महर्षि शाण्डिल्य गोष्ठ में पधारे। महर्षि गोष्ठ में कभी पादुका पहिने नहीं आते। गो माता का सम्मान करते हैं; किंतु गोष्ठ तो कितना भी स्वच्छ किया जाय, गोमय, गोमूत्र से क्लिन्न ही रहता है। महर्षि के चरणों के सम्मुख लाकर उनकी पादुकाएँ हममें से कोई सदा रख देता है, जिससे उठकर जाते समय वे वहीं उन्हें पहिन सकें। उस दिन नन्दराय ने महर्षि के आसन ग्रहण कर लेने पर कहा- 'नीलमणि, बेटा! महर्षि की पादुकाएँ तो द्वार से उठा लाओ!' श्यामसुन्दर ने महर्षि के चरणों पर मस्तक रखकर प्रणाम-कर लिया था। वह दौड़ा-दौड़े तो कई बालक; किंतु वे परस्पर झगड़ न पड़ें, इसलिए सबको छोटे भाई नन्दन ने रोक लिया था। महर्षि की एक पादुका उठाकर मस्तक पर रखकर दोनों हाथों पकड़े कितना प्रसन्न मुख आ रहा था। पता नहीं क्यों, महर्षि के नेत्र भर आये! उन्हें इस परम सुकुमार का इतना श्रम सहन नहीं हुआ होगा। ऋषि-मुनियों के मन की बात हम गोप कैसे समझ सकते हैं। महर्षि ने हाथ जोड़ लिये, सिर झुकाकर अश्रु बहाते 'नमो ब्रह्मण्य देवाय.....' कहकर अपने आराध्य की स्तुति करने लगे उसी समय। कन्हाई एक पादुका रखकर फिर दौड़ गया दूसरी लेने। अपनी घुँघराली काली अलकों पर दोनों करों से पकड़कर पादुका रखे कितना सुन्दर लग रहा था यह। अपने नन्हें करों से विप्रों के पाद-प्रक्षालन करता है। यह इसकी प्रिय क्रीड़ा है। कोई ऋषि-मुनि, अतिथि नन्द गोष्ठ में आ जाय तो श्याम कहीं भी खेलता हो, दौड़ आवेगा सब सखाओं के साथ। इसके कारण सब बालकों ने विप्रों के पदों पर मस्तक रखकर प्रणाम करना और उनके पाद-प्रक्षालन करना सीख लिया है। |
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