नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
24. अतुला चाची
'कनूँ ला मुझे दे तो सही!' गोपियाँ माँगती हैं नीलमणि से, जब इसके हाथ में नवनीत, मोदक या रोटी होती है। जिस पर बहुत सदय होगा, उसके भी हाथ पर तो कुछ देने से रहा। तनिक-सा टुकड़ा तोडे़गा दो अँगुलियों से और समीप आकर मुख में डाल देगा। फिर पूछेगा-'और?' बहुत कम को इसकी कृपा मिलती है। लगता है कि मधुमंगल ने इसे अब अँगूठा दिखाना सिखला दिया है। पूरी रोटी या मोदक बढ़ा देगा माँगने पर और लेने को हाथ बढ़ाओ तो अपना हाथ खींचकर दाहिनी मुट्ठी बाँधकर अँगूठा हिलाने लगेगा। अँगूठा हिलावेगा और हँसता-हँसता मटकेगा। रोहिणी जीजी के समान ही मैंने भी एक दिन भूल की इससे माँगने की। मेरा लाल दौड़ आया समीप और पूरा मोदक इसने मेरे हाथ पर धर दिया। मुझे इसे गोद में लेकर फिर मोदक देने में बहुत मनाना पड़ा। यह तो मेरे ही मुख में मोदक देने की हठ पकड़ गया। बहुत कठिन होता है इसे तब बुलाना जब यह खेल में लगा हो। भूखा रहेगा और पुकार थको, सुनेगा नहीं। पास जाओ तो भागेगा। बल-पूर्वक उठाओ तो मचलकर रोने लगेगा। धूलि में लोट-पोट होगा। 'तू भूखा हैं, देर हो गयी! तेरे बाबा भोजन को बुला रहे हैं!' सब व्यर्थ है। सब अनसुनी कर देगा। 'तेरे सखा स्नान किये हैं। आभूषित हैं। तू धूलि-धूसर अच्छा लगता है?' यह सब नहीं सुनेगा। सखा अच्छे रहें, यह इसे प्रिय है। 'महर्षि आ गये हैं! तुझे बुला रहे हैं। गोदान करेगा तू?' यह बात इसे गम्भीर लगती है। इस पर खड़ा हो जायगा। इस पर लौट आवे तो आ जाय। ऐसे ही रूठ जाय तो इसे एक ही बात मना सकती है- 'लाल! तोक रो रहा है। तू उसे मनावेगा नहीं?' झट आँसू पोंछ लेगा हाथ से और छोटे भाई तोक के समीप जायगा उसे मनाने। तोक रोता है, यह इसे सहन नहीं। यह मेरा नीलमणि- मुझसे अपने गृह में बैठा ही नहीं जाता। मन-प्राण इसी में लगे रहते हैं। मैं कैसे स्वामी को भोजन करा आती हूँ, यह भी मुझे स्मरण नहीं आता। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज