नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
22. महर्षि दुर्वासा–तृणावर्त त्राण
अभी दिन का प्रथम प्रहर ही पूर्ण हुआ है। नन्दरानी अपने लाल को लेकर प्रांगण में, छाया में बैठ गयी हैं। दुग्धपान करा दिया है और दोनों करों में लेकर अपने पुत्र को उछालने लगी हैं। ऊपर उछालती हैं और लेकर हृदय से लगा लेती हैं। अलकें हिलती हैं। इनमें गूँथे सुमन गिर रहे हैं। ये अपनी चन्द्रोज्वल दँतुलियाँ दिखाकर हँसते हैं। बहुत प्रसन्न हैं। मैया उछालती है तो कर-पद फैला देते हैं और झेल लेती है तो इसके कण्ठ से चिपक जाते हैं। ऊपर देखते हैं, हाथ उठाते हैं- 'और!' मैया कहाँ तक उछाले। ये तो ऊपर- और ऊपर जाना चाहते हैं। अब देवी योगमाया तृणावर्त लावेंगी ही। उनके इन स्वामी की इच्छा तो पूर्ण होनी चाहिये; किंतु ये मैया के अंक में रहेंगे तो यह इच्छा कैसे पूर्ण होगी। अब योगमाया को अपना प्रभाव प्रकट करना है। मैया यशोदा अपने लाल को उछालते-उछालते थककर बैठ गयी हैं; किंतु उसे अद्भुत लग रहा है। अपने पर ही आश्चर्य हो रहा है- 'मैं कैसी जननी हूँ कि मुझे अपना पुत्र ही भारी लग रहा है। इसके भार से मेरे पदों में पीड़ा हो रही है, यह कोई सुने तो मुझे क्या कहेगी? मुझे आज क्या हो गया? मैं अभी ही बैठी हूँ और मेरे पद थक-कर दर्द करने लगे? अवश्य मेरा शरीर स्वस्थ नहीं है। यह नन्हा नीलमणि भला क्या भारी होगा; किंतु अब इसे अंक में बैठाये रहने में तो मैं असमर्थ हूँ। पदों में कुछ हुआ है, उनसे इतना भी भार सहा नहीं जाता।' नन्दपत्नी ने पुत्र को अंक से उतारकर भूमि पर बैठा दिया है। कुछ स्मरण हो गया होगा- कोई कार्य। वे कक्ष में चली गयी हैं कृष्णचन्द्र को बैठाकर और अभी ये दिगम्बर नवघनसुन्दर तो ऊपर उछलना ही चाहते हैं। ऊपर देख रहे हैं। नन्हा-सा हाथ उठाये हैं ऊपर। मैया समीप नहीं है, यह अभी ध्यान ही नहीं इनका। यह आया तृणावर्त! योगमाया ही उसे ले आयी हैं प्रेरित करके। अत्यन्त घोर शब्द, उमड़ता-घुमड़ता धूलि का अम्बार, कंकड़ियाँ, पत्ते, तृणों का आकाश तक उठता क्रोशार्ध में घूमता प्रचण्ड वायु का विशाल वात्याचक्र। ऐसा वात्याचक्र जल लेकर सागर में उठता है; किंतु धरा पर मरुभूमि में भी देखा नहीं जाता। यह तो इनका अधिपति ही चला आ रहा है। दिशाएँ अन्धकार में डूब गयीं। पक्षी क्रन्दन करते भागने लगे। वे इसमें पड़ेंगे तो उनके शरीर, पक्ष सबके चिथड़े उड़ जाएँगे। भागने तो लगे हैं वन-पशु और गोष्ठों में बँधी गायें बन्धन तोड़कर। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज