नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
20. कुबला चाची-शैशव
ये सब बालक ही तो हैं; सुई, छुरिका, तलवार सब इनके लिए खिलौना है। इन्हें चोट लग सकती है नन्हें बाट से भी और पाक-गृह में, आँगन में, कक्ष में कहीं भी ये चले जाते हैं। जो हाथ लगे, उसी से खेलने लगते हैं। कन्हाई अब बैठकर द्वार की देहली भी पार कर लेता है। कोई पुकारे, रोके तो बार-बार अपनी घुँघराली अलकों से घिरा चन्द्रमुख घुमाकर पीछे देखेगा और हँसता, किलकता घुटनों के बल भागेगा अथवा पुकारने वाली के ही अंक में आने को दोनों भुजाएँ उठा देगा। व्रजेश्वरी जीजी सेवकों-सेविकाओं पर झल्लाकर भी हँस पड़ती हैं। रुष्ट होना बहुत कम आता है इन्हें। सेवक हैं कि सावधानी ही नहीं रखते। छुरिकाएँ, सुई, हँसिये, कुठार कहीं ऐसे नहीं रखे जा सकते कि बालक उन तक न पहुँच सकें? कोई क्या-क्या छिपाकर रखेगा? गोपराज का गृह है। लकुट, बाट, लकड़ियाँ सबके ही गृहों में रहती हैं। शिशुओं को इससे क्या कि लकुट में परशु लगा है अथवा भल्ल। इनको आहत कर सकती है छोटी लकड़ी भी और ये भारी दण्ड को भी भड़ाम से गिराकर हँसते-किलकते हैं। एक ने गिरा लिया लकुट तो अब दूसरे को भी कोई गिराने को चाहिए। भगवान नारायण ने रक्षा की कि किसी के ऊपर नहीं गिरा। भाण्ड का फूटना तो कोई बात नहीं। अब सिंघाड़े छीले जा रहे थे और सबके सब पाकशाला में पहुँच गये। सेविका इनके सुन्दर मुख ही देखती ठगी-सी रह गयी। यह तो कुशल हुई कि रोहिणी जीजी के साथ हम सब दौड़ पड़ीं- वैसे यह भूल ही थी। हमारे इस प्रकार दौड़ने से कहीं बालक आगे को भाग पड़ते- हाय! कितने तीक्ष्ण कण्टक होते हैं सिंघाड़ों के और सिंघाडे़, उनके छिलके तो भूमि में ही पड़े थे। शिशु हम सबकी ओर आ गये अंक में आने के लिए, यह संयोग ही तो था। रोहिणी और यशोदा जीजी का तो क्या कहूँ- मेरा भी जी किसी काम में नहीं लगता। हम सबकी यही अवस्था है। बहुत चञ्चल है नीलमणि और इसके सब सखा इसी के साथ लगे रहते हैं। ये कब क्या ऊधम कर लेंगे, कब किसको कैसे आघात लग जायगा- इस आशंका के कारण कुछ करते नहीं बनता। प्राण इन्हीं में लगे रहते हैं। |
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