नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
19. नाना सुमुख-अन्नप्राशन
इस छोटे-से दाऊ को कैसे समझाया जाय कि बालकों का यह संस्कार आवश्यक है। जो वस्तु मुख में देते ही इसने निकाल दी, वही दूसरे बालकों को क्यों दी जा रही है? अब शीघ्रता करनी पड़ रही है नन्दराय को। दाऊ मचल रहा है। बालक भी कट, कषाय, तीक्ष्ण, अम्ल, लवण को कैसे सह सकते हैं। कितने भी मधुर बनाये जावें ये रस, इन शिशुओं के सुकुमार अधरों के लिए तो असह्य ही हैं। ये सब तो अभी मधुर भी नहीं सह पाते। 'बाबा! मेरा अन्न-प्राशन?' मधुमंडल आ गया है फिर; किंतु नन्दराय ने हाथ में कटुरस का ग्रास उठाया है तो कैसा कूदकर दूर खड़ा है- 'बाबा! यह सब भी कोई भोज्य वस्तु है। वह विडाल को दे डालो। अन्न-प्राशन के योग्य रस केवल मधुर है- मधुर मोदक!' आज ही यह पता लगेगा कि इन बालकों की रुचि किस ओर है। बड़े बनकर ये क्या करना चाहेंगे। श्रीनारायण कृपा करें! हम गोपों में जो एक मति, एक रुचि चली आती है, इन बच्चों में भी बनी रहे। अब वाद्य बन्द हो गये हैं। महिलाओं का मंगलगान और बन्दियों की विरुदावली भी बन्द हो गयी है। सबको ही मेरे समान उत्सुकता है यह जानने की कि बच्चे आज क्या चुनते हैं। कक्ष में स्वर्णमुद्राओं की, रत्नों की राशियाँ हैं, रत्नजटित नन्हें स्वर्ण-हल हैं, वस्त्र हैं, वेत्र हैं, रज्जु है, लेखनी है अत्यन्त सुन्दर तथा मनमोहक मसिपात्र है। कौशेय परिवेष्टित ग्रन्थ स्वर्णपीठों पर हैं। मुझे इन छुरिकाओं, नन्हें खड्गों का रखना अच्छा नहीं लगता है। ये उत्तम कोशों में सही; किंतु शिशु उन्हें निकाल ले सकते हैं। केवल नन्हें धनुष पर्याप्त थे। बहुत सावधान रहना पड़ेगा। चारों वर्णों के प्रतीक रखने हैं, अत∶ चामर-व्यजन, हथौड़ी नन्हीं सी- सभी उपकरण सजाये ही जाने थे। श्रीनन्दराय ने, इनके दोनों अनुजों ने वस्तुएँ सब उत्तम रखी हैं। सुन्दर रखी हैं। इतनी आकर्षक कि किसी को भी उठाने को शिशु का मन ललक उठे। सबको मण्डालाकार द्वार के सम्मुख सजाया है। अब मेरा नन्हा ब्रजराजकुमार क्या लेगा? कैसी रुचि प्रकट करेगा यह? |
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