नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
19. नाना सुमुख-अन्नप्राशन
'लाल! ये महर्षि कहते हैं- यह तू और ले ले!’ दाऊ अब नन्दराय की मनुहार सुनने से रहा। अब यह मुख नहीं खोलेगा। अब तो इसके अधरों से कटुकषाय, अम्लादि को स्पर्श मात्र करा लो। दाऊ का मुख पौंछकर नन्दराय ने यह तनिक-सा कुछ नीलमणि के अधरों से लगा दिया है। यह इसने अपने नन्हें, पतले लाल अधर फड़काये और मुख ही घुमा लिया है। यह मुख बना रहा है। अपने ओष्ठ विचित्र-विचित्र ढंग से सिकोड़ रहा है। बाबा कैसा है यह इसका कि इतने बुरे स्वाद की वस्तुएँ इसके मुख से लगा रहा है? कुछ मीठा ग्रास होगा। नीलमणि ने तनिक चाटना प्रारम्भ किया है; किंतु नहीं, इसे अभी मधुरस की भी इतनी तीक्ष्णता सहन नहीं है। माता का दूध ही तो पीता है। मुख ही अब सीधा नहीं कर रहा है। धन्य लाल! इसे कहते हैं कि शैशव में ही बालक का भविष्य दीख जाता है। दाऊ अन्तत∶ राजरानी रोहिणी बेटी का पुत्र है। यह अपनों का रक्षक-सहायक होगा। नन्दराय की भुजा पकड़कर बैठ गया है और अभी मुख ही नहीं खोलता था कि अब हठ-कर रहा है कि इसके अनुज को, इसके दूसरे सब भाइयों को यह जो कटु, तीक्ष्ण, कषाय-अम्लादि कुस्वादु पदार्थ खिलाने हैं, सब इसे खिला दो! सबके बदले यह खालेगा।' 'तू ही खा ले!' नन्दराय ने हँसकर इसके मुख में ग्रास दे दिया है। मुख खोलकर लिया है इसने। बिना अरुचि प्रकट किये खाया है। जमा बैठा है- 'जितने ऐसे ग्रास और बालकों को देने हैं- सब मुझे दे दो!' यह मेरा लाल है! दूसरों के दु∶ख-विपत्ति आगे बढ़कर स्वयं अपने सिर लेने वाला यह- यह है जो राजाधिराज का ऐश्वर्य अपने शैशव में भी समेटे है। नन्दराय ने राम-श्याम दोनों के अधर पोंछ दिये हैं। अभिनन्द[1] की पत्नी पीवरी बेटी ने उठा लिया है अंक में नीलमणि को किंतु यह दाऊ तो उठना ही नहीं चाहता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महानन्द
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