नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
17. श्रीगर्गाचार्य–नामकरण
दो क्षण भी नन्दराय ने सोचने में नहीं लगाया। उन्होंने तत्काल कहा- 'भगवन! वैसे तो ब्राह्मण जन्म से ही तीनों वर्णों के गुरु होते हैं और यह सेवक तो उसी कुल का है, जिसको आपने अपने पौरोहित्य का प्रसाद प्रदान किया है। महर्षि शाण्डिल्य ज्योतिष-शास्त्र में रुचि नहीं रखते, जिसकी नाम-करण में अत्यन्त आवश्यकता है और उन्हें तो सुविधा हो जायगी आगे बड़े कुमार का भी अन्न-प्राशन, कर्णवेधादि संस्कार कराने में, यदि आप दोनों का नाम-करण साथ-साथ कर देते हैं। गोष्ठ को परिमार्जित करना आवश्यक नहीं है। उस नित्य पवित्र स्थान में आप केवल स्वस्तिवाचन करके दोनों बालकों का नाम-करण कर दें। मैं अपने भाइयों को भी सूचना नहीं दूँगा। यह संस्कार आपने किया है, इसे गोकुल में मेरे स्वजन भी नहीं जानेंगे तो कंस के सुनने की कोई सम्भावना नहीं रहती।' मुझे तो यह अभीष्ट ही था। सेवकों ने गोष्ठ, गोमय हटाकर स्वच्छ कर दिया था और अन्य कार्यों में लग गये थे। केवल कुछ सद्य∶प्रसूता धेनुएँ और उनके बछड़े थे गोष्ठ में जब मैं व्रजपति के साथ उसमें आया। स्वयं नन्दराय ने मेरे लिए आसन आस्तृत किया। जल, कुश तथा सामान्य पूजन-सामग्री शीघ्र आ गयी। कोई आयोजन करना नहीं था। मैंने केवल संकल्प कराया और पञ्चोपचार मात्र से गणपति-पूजन। नन्दराय ने मेरे मना करने पर भी सविधि पूजा की मेरी। स्वस्ति-पाठ करके मैंने आपके गौर कुमार को अंक में लिया। उसे अपनी क्रोड़ी में लिए यशोदाजी आयी थीं। 'यह रोहिणी-नन्दन अपने सदगुणों से अपने समस्त सुहृदों को प्रसन्न करेगा। सबका चित्त इसके गुणों में रमण करेगा, अत∶ इसका नाम राम है।' मैं जानता हूँ कि आपके इस कुमार का नाक्षत्रिक नाम रोष है और यह भी सार्थक नाम है उसके सम्बन्ध में; किन्तु उसका यह नाम गोकुल के लिए- गोपों के लिए सर्वथा नहीं है और नित्य नाम तो उसका राम है ही। 'यह सृष्टि के समस्त बलशालियों का शिरोमणि होगा, अत∶ इसका दूसरा नाम बल है।' गोकुलपति को यह नाम बहुत प्रिय लगा। 'यह पूरे यादव-कुल को अपने में आकृष्ट किये रहेगा। स्वजनों का वैर-विरोध, वैमनस्य मिटाकर उनमें संगठन बनाये रखेगा, अत∶ इसका नाम संकर्षण होगा। |
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