नंद महर घर होत बधाई। करत सवै बिधि देव-पुजाई।।
नेवज करति जसोदा आतुर। आठौ सिद्धि घरहिं अति चातुर।।
मैदा उज्जवल करि कै छान्यौ। बेसन दारि-चनक करि बान्यौ।।
घृत मिष्टान्न सवै परिपूरन। मिस्री करत पाग कौं चूरन।।
कदुआ करत मिठाई घृत पक। रोहिनि करति अन्न भोजन-तक।।
संग और ब्रजनारी लागीं। भोजन करति हैं बड़ी सभागी।।
महरि करति ऊपर तरकारी। जोरति सब बिधि न्यारी-न्यारी।।
सूरदास जो माँगत जवहीं। भीतर ते लै देति हैं तबहीं।।892।।