नंद बुलावत हैं गोपाल।
आवहु बेगि बलैया लेउँ हौं, सुंदर नैन बिसाल।
परस्यौे थार धरयौ मग जोवत, बोलति बचन-रसाल।
भात सिरात तात दुख पावत, बेगि चलौ मेरे लाल।
हौं वारी नान्हे पाइनि की दौरि दिखावहु चाल।
छाँड़ि देहु तुम लाल अटपटी, यह गति-मंद-मराल।
सो राजा जो अगमन पहुँचै, सूर सु भवन उताल।
जौ जैहै बलदेव पहिलैं ही, तौ हँसिहैं सब ग्वाल।।223।।