नंद नंदन सुघराई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग पूरबी


नंद-नंदन सुघराई, बांसुरी बजाई।
सरगम सुनीकैं साधि, सप्त सुरनि गाई।
अतीत अनागत सँगीत, बिच तान मिलाई।।
सुर तालऽरु नृत्य ध्याइ, पुनि मृदँग बजाई।
सकल कला गुन प्रबीन, नवल बाल भाई।।
सूरज प्रभु अरस परस, रीझि सब रिझाई।।1151।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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