नंद नंदन बिलमाई -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग सारंग





नंद नँदन बिलमाई, बदराने घेरी माई ।। टेक ।।
इत घन गरजे उत घन लरजे, चमकत बिज्जु सवाई ।
उमड़ घुमड़ चहूँ दिस से आया, पवन चलै पुरवाई ।
दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल सबद सुणाई ।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, चरण कमल चितलाई ।।140।।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नन्दनन्दन = श्रीकृष्ण को। विलमाई = लुभाकर रोक रक्खा। घेरी = चारों ओर से घेर लिया। लरजे = डोल डोल वा झुकझुक कर बरसाता है। सवाई = विशेष रूप से। विज्जु = बिजली। पुरवाई = पुरवा। सुणाई = सुना रही है।

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