नंद नंदन उर लाइ लई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग कान्हरौ


नंद-नँदन उर लाइ लई।
नागरि प्रेम प्रगट तनु ब्याकुल, तब करुना हरि-हृदय भई।।
देखि नारि तरु-तर मुरझानी, देह-दसा सब भूलि गई।
प्रिया जानि अंकम भरि लीन्ही, कहि-कहि ऐसी काम हई।।
बदन बिलोकि कंठ उठि लागी, कनक-बेलि आनंद जई।
सूर स्याम फल कृपा दृष्टि भऐं, अतिहिं भई आनंदमई।।1129।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः