नंद कै नँदन आली -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग काफी


नंद कै नँदन आली, मोहिं कीन्ही बावरी।
कहा करौ, चित्त क्यौ हूँ, रहत न ठाँव री।।
बिहरत हरि जहाँ, तहाँ तुहूँ आव री।
निसिहुँ बासर आली, मोकौ यहै चाव री।।
जमुना भरन जल जाइ, यहै दाँव री।
गुरु-पुर-जननि सौ, और न उपाव री।।
काफी राग मुख गावै, मुरली बजाइ री।
धुनि सुनि तनु भूली, अति ही सुहाइ री।।
चंदन कपूर चूर, फेटनि भराइ री।
सौधै भरि पिचकारी, मारत है धाइ री।।
आतुर ह्वै चलि, और जाइ कि न जाइ री।
चित न रहत ठौर, और न सुहाइ री।।
मिलि प्रभु 'सूरज' कौ, सकुच गँवाइ री।
लाज डारि, गारी खाइ, कुल बिसराइ री।।2887।।

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