नंद कहत तुम भले कन्हाई।
तुम तौ तिहूँ लोक के ठाकुर हमकौ भले भ्रमाई।।
इंद्र कुबेर बरुन सब दिगपति तिनके तुम हौ साई।
बरुन हमहिं लै गयौ पतालहि सुमिरत तुमहि गुसाई।।
तबहिं स्याम यह कही नंद सौं जल कौ यहै सुभाई।
जमुनाजल मैं यहै अचभौ भीतर देत दिखाई।।
चलिये फेरि न्हान तुम बाबा कैसे चरित दिखाही।
जमुना जाइ नद पुनि देख्यौ, बरुनलोक दिखराही।।
‘सूर’ स्याम सौ कहत नंद घर चलियै महर डेराई।। 48 ।।