नंद-घरनि सुत भलौ पढ़ायौ।
ब्रज-बीथिनि, पुर-गलिनि घरै-घर, घाट-वाट सब सोर मचायौ।
लरिकन मारि भजत काहू के, काहू कौ दधि-दूध लुटायौ।
काहू कै घर करत भँड़ाई, मैं ज्यौं त्यौं करि पकरन पायौ।
अब तौ इन्हैं जकरि धरि बाँधौं, इहि सब तुम्हारौ गाउँ भजायौ।
सूर स्याम भुज गही नँदरानी, बहुरि कान्ह अपनैं ढँग लायौ।।340।।