नंद

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संक्षिप्त परिचय
नंद
कृष्ण-बलराम का नामकरण करवाते नन्दबाबा
अवतार वसुश्रेष्ठ द्रोण
जन्म विवरण ब्रह्मा जी के वरदान के प्रभाव से वसुश्रेष्ठ द्रोण ब्रज में नंद हुए थे और धरादेवी यशोदा
धर्म-संप्रदाय हिन्दू
परिजन यशोदा, रोहिणी, कृष्ण, बलराम
विवाह यशोदा
प्रसिद्ध मंदिर नन्द जी मंदिर, नन्दगाँव
निवास गोकुल, नन्दगाँव
मृत्यु जिस प्रकार नंदबाबा गोप, गोपी, गौएं तथा ब्रजमण्डल के साथ नित्यलोक से पृथ्वी पर प्रकट हुए थे, वैसे ही नित्यलोक को सबको साथ लेकर चले गए।
संबंधित लेख वसुदेव, श्रीकृष्ण, बलराम, यशोदा, रोहिणी
विशेष सती ने महामाया के रूप में इनके घर जन्म लिया था, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी।
अन्य जानकारी नंद इन्द्र की पूजा का उत्सव मनाया करते थे। श्रीकृष्ण ने इसे बंद करके कार्तिक मास में अन्नकूट का उत्सव आंरभ कराया।

नंद मथुरा या मधुपुरी के आसपास गोकुल और नंदगाँव में रहने वाले आभीर गोपों के मुखिया थे। इनकी पत्नी यशोदा ने श्रीकृष्ण का उनकी बाल्यवस्था में पालन-पोषण किया था। कृष्ण की अधिकांश बाल लीलाएँ इन्हीं के यहाँ हुई थीं।

जन्म

नंदबाबा भगवान श्रीकृष्ण के नित्य सिद्ध पिता हैं। जब श्यामसुन्दर को पृथ्वी पर आना होता है, तब गोप, गोपियां, गायें और पूरा ब्रजमण्डल नंदबाबा के साथ पहले ही पृथ्वी पर प्रकट हो जाता है। किंतु जब भी इस प्रकार के भगवान के नित्यजन पृथ्वी पर पधारते हैं, कोई-न-कोई जीव जो सृष्टि में उनका अंशरूप होता है, उनसे एक हो जाता है। इसलिये ऐसा भी वर्णन आता है कि पूर्वकल्प में वसुश्रेष्ठ द्रोण और उनकी पत्नी धरादेवी ने भगवान को प्रसन्न करने के लिये बहुत कठिन तपस्या की। तब ब्रह्माजी उन्हें वरदान देकर तपस्या से निवृत करने के लिये उनके समीप आये, तब उन्होंने सृष्टिकर्ता से वरदान मांगा- "जब विश्वेश्वर श्रीहरि धरा पर प्रकट हों, तब हमारा उनमें पुत्रभाव हो।" ब्रह्माजी के उसी वरदान के प्रभाव से द्रोण ब्रज में नंद हुए और धरादेवी यशोदा हुई।

वसुदेव से मित्रता

मथुरा में वृष्णि वंश में सर्वगुणालंकृत राजा देवमीढजी हुए। इनकी दो पत्नियां थीं- एक क्षत्रिय कन्या और दूसरी वैश्य पूत्री। क्षत्रिय कन्या के इनके पुत्र हूए शूरसेन। इन्हीं शूरसेन के पुत्र वसुदेव हुए। वैश्य कन्या से हुए पर्यन्य। ये अपनी माता के कारण गोप-जाति के माने गये। मथुरा के अन्तर्गत बृहद्वन में यमुना के उस पार महावन में इन्होंने अपना निवास बनाया। मथुरामण्डल की गो-सम्पति के ये प्रमुख अधिकारी हुए। इनके पुत्र हुए- उपनन्द, अभिनन्द, नंद, सन्नन्द और नन्दन। पिता के पश्चात् ब्रजमण्डल के गोष्ठनायकों को तभा भाईयों की सम्पत्ति योग्य होने के कारण मझले भाई होने पर भी नंदजी ब्रजेश्वर हुए। वसुदेव जी इनके भाई ही लगते थे और उनसे नंदबाबा की घनिष्ठ मित्रता थी।

कृष्ण-बलराम का पालन-पोषण

जब मथुरा में कंस का अत्याचार बढ़ने लगा, तब वसुदेव की पत्नी रोहिणी की गोद में बलराम पधारे। श्रीकृष्णचन्द्र को भी वसुदेव चुपचाप नंदगृह में रख आये। राम-श्याम नंदगृह में लालित-पालित हुए। नंदबाबा बात्सल्य-रस के अधिवेदता हैं। उनके प्राण श्रीकृष्ण में ही बसते हैं। अपने श्याम के लिये ही वे उठते-बैठते, खाते-पीते, चलते-फिरते, प्राण धारण करते तथा दान-धर्म, पूजा-पाठ आदि करते थे। कन्हैया प्रसन्न रहे, सकुशल रहे- बस, एकमात्र यही चिन्तन और यही इच्छा उनमें थी। जब गोकुल में नाना प्रकार के उत्पाद होने लगे, शकट का गिरना, यमलार्जुन का टूटना आदि घटनाएं हुई, तब नंदबाबा अपने पूरे समुदाय के साथ वहाँ से बरसाना के पास नंदगांव चले गये।
श्रीकृष्ण द्वारा रक्षा
  • एक बार नंदबाबा ने एकादशी को व्रत किया। रात्रि-जागरण करके वे गोपों के साथ हरिकीर्तन में लगे थे। कुछ अधिक रात्रि शेष रही थी, तभी प्रातःकाल समझकर वे स्नान करने यमुना में उतर गये। वरुण का एक दूत उन्हें पकड़कर वरुण जी के पास ले गया। ब्रजवासी नंदबाबा को न देखकर विलाप करने लगे। उसी समय श्रीकृष्णचन्द्र यमुना में कूदकर वरुणलोक पहुँचे। जल के अधिदेवता वरुण ने भगवान का बड़ा आदर किया, ससम्मान पूजा की। नंदबाबा को वहाँ से लेकर श्यामसून्दर लौट आये।
  • इसी प्रकार 'शिवरात्रि' को अम्बिका वन की यात्रा में रात को सोते समय जब नंदबाबा को अजगर ने आकर पकड़ लिया और गोपों द्वारा जलती लकडि़यों से मारे जाने पर भी वह टस-से-मस नहीं हुआ, तब श्रीकृष्ण ने अपने चरणों से छूकर उसे सद्गति दी और नंदबाबा को छुड़ाया।

नंद-उद्धव संवाद

बाद के समय में अक्रूर ब्रज में आये। नंदबाबा गोपों के साथ राम-श्याम को लेकर मथुरा चले गये। मथुरा में श्रीकृष्ण ने कंस को मारकर अपने नाना उग्रसेन को राजा बनाया। वसुदेव-देवकी को कारागार से छुड़ाया। यह सब तो हुआ, किंतु राम-श्याम ब्रज नहीं लौटे। वे मथुरा में ही रह गये। नंदबाबा को लौट आना पड़ा। जब उद्धव श्याम का संदेश लेकर ब्रज आये, तब नंदबाबा ने उनसे व्याकुल होकर पूछा- "उद्धव जी ! क्या कभी श्यामसुन्दर हम सबको देखने यहाँ आयेंगे? क्या हम उनके हंसते हुए कमल-मुख को एक बार फिर देख सकेंगे? हमारे लिये उन्होंने दावाग्निपान किया, कालिय दमन किया, इन्द्र की वर्षा से हमें बचाया, अजगर से मेरी रक्षा की। अनेक संकटों से ब्रज का परित्राण किया उन्होंने। उनका पराक्रम, उसकी हंसी, उनका बोलना, उनका चलना, उनकी क्रीड़ा आदि का जब हम स्मरण करते हैं और जब हम उनके चरण-कमलों से अंकित पर्वत, पृथ्वी, वन एवं यमुना-पुलिन को देखते हैं, तब अपने-आपको भूल जाते हैं। हमारी सब क्रियाएं शिथिल पड़ जाती हैं।"

नित्यलोक प्रस्थान

बलराम द्वारका से एक बार ब्रज आये और दो महिने वहाँ रहे। फिर सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में पूरा ब्रजमण्डल और द्वारका का समाज एकत्र हुआ। यहीं नंदबाबा ने अपने श्याम को फिर देखा। कुरुक्षेत्र से लौटने पर तो ब्रजमण्डल, उसके सभी दिव्य तरू, लता, पादप तक अन्तर्हित हो गये। जैसे नंदबाबा गोप, गोपी, गौएं तथा ब्रजमण्डल के साथ नित्यलोक से पृथ्वी पर प्रकट हुए थे, वैसे ही नित्यलोक को सबको साथ लेकर चले गए।


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