नंदनँदन तियछवि तनु काछे।
मनु गोरी साँवरी नारि दोउ, जाति सहज मै आछे।।
स्याम अंग कुसुमी नई सारी, फल गुंजा की भाँति।
इत नागरि नीलांबर पहिरे, जनु दामिनि घन काँति।।
आतुर चले जात बनधामहि, मन अति हरष बढाए।
'सूर' स्याम वा छवि कौ नागरि निरखति नैन चुराए।।2155।।