धृतराष्ट्र की पुत्र चिन्ता तथा संताप

महाभारत वनपर्व के 'इंद्रलोकाभिगमनपर्व' के अंतर्गत अध्याय 48, 49 में दुःखी धृतराष्ट्र का संजय के सम्मुख अपने पुत्रों के लिये चिंता और संजय द्वारा धतराष्ट्र की बातों का अनुमोदन कर उन्हें संताप देने का वर्णन है, जिसका उल्लेख निम्न प्रकार है[1]-

जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन्! अमित तेजस्वी कुन्तीकुमार अर्जुन का यह कर्म तो अत्यन्त अद्भुत है। परम बुद्धिमान् राजा धृतराष्ट्र ने भी यह अवश्य सुना होगा। उसे सुनकर उन्होंने क्या कहा था ? यह बतलाइये।

वैशम्पायनजी ने कहा- जनमेजय! अम्बिकानन्दन राजा धृतराष्ट्र ने ऋषि द्वैपायन व्यास के मुख से अर्जुन के इन्द्रलोकगमन का समाचार सुनकर संजय से यह बात कही।

धृतराष्ट्र बोले- सूत! मैंने परम बुद्धिमान कुन्ती कुमार अर्जुन का सारा वृत्तान्त सुना है। सारथे! क्या तुम्हें भी इस विषय में यथार्थ बातें ज्ञात हुई हैं ? मेरा मूढ़बुद्धि पुत्र तो विषय भोगों में फंसा हुआ है। उसका विचार सदा पापपूर्ण ही बना रहता है। प्रमाद में पड़ा हुआ वह अत्यन्त दुर्बुधि दुर्योधन एक दिन सारे भूमण्डल का नाश करा देगा। जिन महात्मा के मुख से हंसी में भी सदा सत्य ही बातें निकलती हैं और जिन की ओर से लड़ने वाले धनंजय जैसे योद्धा हैं, उन धर्मराज युधिष्ठिर के लिये इस कौरव-राज्य को जीतने की तो बात ही क्या है, वे तीनों लोकों पर अधिकार प्राप्त कर सकते हैं। जो पत्थर पर रगड़ कर तेज किये गये हैं, जिनके अग्रभाग बड़े तीखे हैं, उन कर्णि नामक नाराचों का प्रहार करने वाले अर्जुन के आगे कौन योद्धा ठहर सकता है ? जराविजयी मृत्यु भी उनका सामना नहीं कर सकती। मेरे सभी दुरात्मा पुत्र मृत्यु के वश में हो गये हैं, क्योंकि उनके सामने दुर्धर्ष वीर पाण्डवों के साथ युद्ध करने का अवसर उपस्थित हुआ है। मैं दिन रात विचार करने में भी यह नहीं समझ पाया कि युद्ध में ‘गाण्डीवधन्वा’ अर्जुन का सामना कौन रथी कर सकता हैं ? द्रोण और कर्ण उस अर्जुन का सामना कर सकते हैं। भीष्म भी युद्ध में उससे लोहा ले सकते हैं; परन्तु तो भी मेरे मन में महान संशय ही बना हुआ है। मुझे इस लोक में अपने पक्ष की जीत नहीं दिखायी देती। कर्ण दयालु और प्रमादी है। आचार्य द्रोण वद्ध एवं गुरु हैं। इधर कुन्तीकुमार अर्जुन अत्यन्त अमर्ष में भरे हुए और बलवान हैं। उद्योगी और दृढ़ पराक्रमी हैं। सब ओर से घमासान युद्ध छिड़ने की सम्भावना हो गयी है। युद्ध में पाण्डवों की पराजय नहीं हो सकती; क्योंकि उनकी ओर सभी अस्त्रविद्या के विद्वान शूरवीर और महान् यशस्वी हैं। और वे पराजित न होकर सवेश्वर सम्राट बनने की इच्छा रखते हैं। इन कर्ण आदि योद्धाओं का वध हो जाय अथवा अर्जुन ही मारे जायं तो इस विवाद की शांति हो सकती है। परन्तु अर्जुन को मारने वाला या जीतने वाला कोई नहीं है। मेरे मन्दबुद्धि पुत्रों के प्रति उनका बढ़ा हुआ क्रोध कैसे शांत हो सकता है ? अर्जुन इन्द्र के समान वीर हैं। उन्होंने खाण्डव वन में अग्नि को तृत्प किया तथा राजसूर्य महायज्ञ में समस्त राजाओं पर विजय पायी। संजय! पर्वत के शिखर पर गिरनेवाला वज्र भले ही कुछ बाकी छोड़ दे; किंतु तात! किरीटधारी अर्जुन के चलाये हुए बाण कुछ भी शेष नहीं छोड़ेंगे। जैसे सूर्य की किरणें चराचर जगत् को संतप्त करती हैं, उसी प्रकार अर्जुन की भुजाओंद्वारा चलाये गये बाण मेरे पुत्रों को संतप्त कर देंगे। मुझे तो आज भी सव्यसाची अर्जुन ने रथकी घर घराहट से सारी कौरव-सेना भयातुर हो छिन्न-भिन्न सी होती प्रतीत हो रही है। जब किरीटधारी अर्जुन हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिये (तूणीर से) बाण निकालते और चलाते हुए समरभूमि में खडे़ होंगे, उस समय उनसे पार पाना असम्भव हो जायगा। वे ऐसे जान पड़ेंगे, मानों विधाता ने किसी दूसरे सर्वसंहारकारी यमराज की सृष्टि कर दी हो।

संजय बोला- राजन आपने जो दुर्योधन के विषय में जो बाते कही हैं, वे सभी यथार्थ हैं। महीपते! आपका वचन मिथ्या नहीं है। महातेजस्वी वे पाण्डव अपनी धर्मपत्नी यशस्विनी कृष्णा को सभा में लायी गयी देखकर क्रोध से भरे हुए हैं और महाराज! दुःशासन तथा कर्ण की वह कठोर बाते सुनकर पाण्डव आप लोगों की निंदा करते हैं, ऐसा मुझे विश्वास है। राजेन्द्र! मैंने यह भी सुना है कि कुन्तीकुमार अर्जुन ने एकादश मूर्तिधारी भगवान शंकर को भी अपने धनुष-बाण की कलाद्वारा संतुष्ट किया। जटाजूटधारी सर्वदेवेश्वर भगवान शंकर ने स्वयं ही अर्जुन के बल की परिक्षा लेने के लिये किरातवेष धारण करके उनके साथ युद्ध किया था। वहाँ अस्त्रप्राप्ति के लिये विशेष उद्योगशील कुरुकुलरत्न अर्जुन को उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन लोकपालों ने भी दर्शन दिया था। इस संसार में अर्जुन को छोड़कर दूसरा कोई मनुष्य ऐसा नहीं है, जो इन लोकश्वरों का साक्षात दर्शन प्राप्त कर सके। राजन्! अष्टमूर्ति भगवान महेश्वर भी जिसे युद्ध में पराजित न कर सके, उन्हीं वीरवर अर्जुन को दूसरा कोई वीर पुरुष जीतने का साहस नहीं कर सकता। भरी सभा में द्रौपदी का वस्त्र खींचकर पाण्डवों को कुपित करने वाले आप के पुत्रों ने स्वयं ही इस रोमांचकारी, अत्यन्त भयंकर एवं घमासान युद्ध को निमन्त्रित किया। जब दुर्योधन ने द्रौपदी को अपनी दोनों जांघें दिखायी थीं, उस समय यह देखकर भीमसेन ने फड़कते हुए ओठों से जो बात कही थी, वह व्यर्थ नहीं हो सकती। उन्होंने कहा था-‘पापी दुर्योधन! मैं तेरहवें वर्ष के अन्त में अपनी भयानक वेगशाली गदा से तुझ कपटी जुआरी की दोनों जांघें तोड़ डालूंगा। सभी पाण्डव प्रहार करने वाले योद्धाओं में श्रेष्ठ हैं। सभी अपरिमित तेज से सम्पन्न हैं तथा सबको अस्त्रों का परिज्ञान है, अतः वे देवताओं के लिये भी अत्यन्त दुर्जय हैं। मेरा तो ऐसा विश्वास है कि अपनी पत्नी के अपमान जनित अमर्ष से युक्त और रोष से उत्तेजित हो समस्त कुन्तीपुत्र संग्राम में आपके पुत्रों का संहार कर डालेंगे।

धृतराष्ट्र ने कहा-सूत! कर्ण ने कठोर बाते कहकर क्या किया, पूरा वैर तो इतने से ही बढ़ गया कि द्रौपदी को सभा में (केश पकड़कर ) लाया गया। अब भी मेरे मूर्ख पुत्र चुपचाप बैठे हैं। उनका बड़ा भाई दुर्योधन विनय एवं नीति के मार्ग पर नहीं चलता। सूत! वह मन्दभागी दुर्योधन मुझे अन्धा, अकर्मण्य और अविवेक की समझकर मेरी बात भी नहीं सुनना चाहता। कर्ण और शकुनि आदि जो उसके मूर्ख मंत्री हैं, वे भी विचारशून्य होकर उसके अधिक-से-अधिक दोष बढ़ाने की ही चेष्टा करते हैं। अमित तेजस्वी अर्जुन के द्वारा स्वेच्छापूर्वक छोड़े हुए बाण भी मेरे पुत्रों को जलाकर भस्म कर सकते हैं, फिर क्रोधपूर्वक छोड़े हुए बाणों के लिये तो कहना ही क्या है ? अर्जुन के बाहु-बल द्वारा चलाये हुए उनके महान धनुष से छूटे हुए दिव्यास्त्रमन्त्रों द्वारा अभिमंत्रित बाण देवताओं का भी संहार कर सकते हैं। जिनके मंत्री, संरक्षक और सुह्नद त्रिभूवननाथ, जनार्दन श्रीहरि हैं, वे किसे नहीं जीत सकते ? संजय अर्जुन का वह पराक्रम तो बड़े आश्चर्य का विषय है कि उन्होंने महादेवजी के साथ बाहुयुद्ध किया, यह मेरे सुनने में आया है। आज से पहले खाण्डव वन में अग्निदेव की सहायता के लिये श्रीकृष्ण और अर्जुन ने जो कुछ किया है, वह तो सम्पूर्ण जगत की आंखों के सामने है। जब कुन्तीपुत्र अर्जुन, भीमसेन और यदुकुलतिलक वासुदेव श्रीकृष्ण क्रोध में भरे हुए हैं, तब मुझे यह विश्वास कर लेना चाहिये कि शकुनि तथा अन्य मंत्रियों सहित मेरे सभी पुत्र सर्वथा जीवित नहीं रह सकते।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत वन पर्व अध्याय 48 श्लोक 1-18
  2. महाभारत वन पर्व अध्याय 49 श्लोक 1-23

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द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को सती स्त्री के कर्तव्य की शिक्षा | द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को पतिसेवा की शिक्षा | सत्यभामा का द्रौपदी को आश्वासन
घोषयात्रा पर्व
पांडवों का समाचार सुनकर धृतराष्ट्र का खेद तथा चिंतापूर्ण उद्गार | शकुनि और कर्ण द्वारा दुर्योधन को पांडवों के पास जाने के लिए उभाड़ना | दुर्योधन द्वारा कर्ण और शकुनि की मंत्रणा स्वीकार करना | दुर्योधन आदि को द्वैतवन जाने हेतु धृतराष्ट्र की अनुमति | द्वैतवन में दुर्योधन के सैनिकों तथा गंधर्वों में कटु संवाद | कौरवों का गंधर्वों से युद्ध और कर्ण की पराजय | गंधर्वों द्वारा दुर्योधन आदि की पराजय और उनका अपहरण | कौरवों को छुड़ाने हेतु युधिष्ठिर का भीमसेन को आदेश | पांडवों का गंधर्वों के साथ युद्ध | पांडवों द्वारा गंधर्वों की पराजय | चित्रसेन, अर्जुन तथा युधिष्ठिर संवाद और दुर्योधन का छुटकारा | दुर्योधन का मार्ग में ठहरना और कर्ण द्वारा उसका अभिनन्दन | दुर्योधन का कर्ण को अपनी पराजय का समाचार बताना | दुर्योधन द्वारा अपनी ग्लानि का वर्णन तथा आमरण अनशन का निश्चय | दुर्योधन द्वारा दु:शासन को राजा बनने का आदेश | कर्ण द्वारा समझाने पर भी दुर्योधन का आमरण अनशन का निश्चय | दैत्यों का कृत्या द्वारा दुर्योधन को रसातल में बुलाना | दैत्यों का दुर्योधन को समझाना | दुर्योधन द्वारा अनशन की समाप्ति और हस्तिनापुर प्रस्थान | भीष्म का दुर्योधन को पांडवों से संधि करने का प्रस्ताव | कर्ण के क्षोभपूर्ण वचन और दिग्विजय के लिए प्रस्थान | कर्ण द्वारा सारी पृथ्वी पर दिग्विजय | कर्ण की दिग्विजय पर हस्तिनापुर में उसका सत्कार | दुर्योधन द्वारा वैष्णव यज्ञ की तैयारी | दुर्योधन के यज्ञ का आरम्भ तथा समाप्ति | कर्ण द्वारा अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर की चिन्ता तथा दुर्योधन की शासननीति
मृगस्वप्नोद्भव पर्व
पांडवों का काम्यकवन में गमन
व्रीहिद्रौणिक पर्व
व्यास का पांडवों के पास आगमन | व्यास का पांडवों से दान की महत्ता का वर्णन | दुर्वासा द्वारा महर्षि मुद्गल के दानधर्म एवं धैर्य की परीक्षा | महर्षि मुद्गल का देवदूत से प्रश्न करना | देवदूत द्वारा स्वर्गलोक के गुण-दोष तथा विष्णुधाम का वर्णन | व्यास का युधिष्ठिर को समझाकर अपने आश्रम लौटना
द्रौपदीहरण पर्व
दुर्योधन द्वारा दुर्वासा का आतिथ्य सत्कार | दुर्योधन द्वारा दुर्वासा को प्रसन्न करना और युधिष्ठिर के पास भेजना | द्रौपदी के स्मरण करने पर श्रीकृष्ण का प्रकट होना | कृष्ण द्वारा पांडवों को दुर्वासा के भय से मुक्त करना | जयद्रथ का द्रौपदी पर मोहित होना | कोटिकास्य का द्रौपदी को जयद्रथ का परिचय देना | द्रौपदी का कोटिकास्य को उत्तर | जयद्रथ और द्रौपदी का संवाद | जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का अपहरण | पांडवों द्वारा जयद्रथ का पीछा करना | द्रौपदी का जयद्रथ से पांडवों के पराक्रम का वर्णन | पांडवों द्वारा जयद्रथ की सेना का संहार | युधिष्ठिर का द्रौपदी और नकुल-सहदेव के साथ आश्रम पर लौटना | भीम और अर्जुन द्वारा वन में जयद्रथ का पीछा करना
जयद्रथविमोक्षण पर्व
भीम द्वारा जयद्रथ को बंदी बनाकर युधिष्ठिर के समक्ष उपस्थित करना | शिव द्वारा जयद्रथ से श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
रामोपाख्यान पर्व
युधिष्ठिर का अपनी दुरावस्था पर मार्कडेण्य मुनि से प्रश्न करना | राम आदि का जन्म तथा कुबेर की उत्पत्ति का वर्णन | रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, खर और शूर्पणखा की उत्पत्ति | कुबेर का रावण को शाप देना | देवताओं का रीछ और वानर योनि में संतान उत्पन्न करना | राम के राज्याभिषेक की तैयारी | राम का वन को प्रस्थान | भरत की चित्रकूट यात्रा | राम द्वारा राक्षसों का संहार तथा रावण-शूर्पणखा वार्तालाप | राम द्वारा मारीच का वध | रावण द्वारा सीता का अपहरण | रावण द्वारा जटायु वध एवं राम द्वारा उसका अंत्येष्टि संस्कार | राम द्वारा कबन्ध राक्षस का वध | राम और सुग्रीव की मित्रता | राम द्वारा बाली का वध | अशोक वाटिका में सीता को त्रिजटा का आश्वासन | रावण और सीता का संवाद | राम का सुग्रीव पर कोप | सुग्रीव का सीता की खोज में वानरों को भेजना | हनुमान द्वारा लंकायात्रा का वृत्तान्त सुनाना | वानर सेना का संगठन | नल द्वारा समुद्र पर सेतु का निर्माण | विभीषण का अभिषेक तथा वानर सेना का लंका की सीमा में प्रवेश | अंगद का रावण के पास जाकर राम का संदेश सुनाना | राक्षसों और वानरों का घोर संग्राम | राम और रावण की सेनाओं का द्वन्द्वयुद्ध | प्रहस्त और धूम्राक्ष का वध | रावण द्वारा युद्ध हेतु कुम्भकर्ण को जगाना | कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथी का वध | इन्द्रजित का मायामय युद्ध तथा श्रीराम और लक्ष्मण की मूर्च्छा | राम-लक्ष्मण का अभिमंत्रित जल से नेत्र धोना | लक्ष्मण द्वारा इन्द्रजित का वध | रावण का सीता के वध हेतु उद्यत होना | राम और रावण का युद्ध तथा रावण का वध | राम का सीता के प्रति संदेह | देवताओं द्वारा सीता की शुद्धि का समर्थन | राम का आयोध्या आगमन तथा राज्याभिषेक | मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को आश्वासन
पतिव्रतामाहात्म्य पर्व
राजा अश्वपति को सावित्री नामक कन्या की प्राप्ति | सावित्री का पतिवरण के लिए विभिन्न देशों में भ्रमण | सावित्री का सत्यवान के साथ विवाह करने का दृढ़ निश्चय | सावित्री और सत्यवान का विवाह | सावित्री की व्रतचर्या | सावित्री का सत्यवान के साथ वन में जाना | सावित्री और यम का संवाद | यमराज का सत्यवान को पुन: जीवित करना | सावित्री और सत्यवान का वार्तालाप | राजा द्युमत्सेन की सत्यवान के लिए चिन्ता | सावित्री द्वारा यम से प्राप्त वरों का वर्णन | द्युमत्सेन का राज्याभिषेक तथा सावित्री को सौ पुत्रों और सौ भाइयों की प्राप्ति
कुण्डलाहरण पर्व
सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने के लिए सचेत करना | कर्ण का इन्द्र को कवच-कुण्डल देने का ही निश्चय करना | सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने का आदेश | कर्ण का इन्द्र से शक्ति लेकर ही कवच-कुण्डल देने का निश्चय | कुन्तिभोज के यहाँ दुर्वासा का आगमन | कुन्तुभोज द्वारा दुर्वासा की सेवा हेतु पृथा को उपदेश देना | कुन्ती का पिता से वार्तालाप एवं ब्राह्मण की परिचर्या | कुन्ती को तपस्वी ब्राह्मण द्वारा मंत्र का उपदेश | कुन्ती द्वारा सूर्य देवता का आवाहन | कुन्ती-सूर्य संवाद | सूर्य द्वारा कुन्ती के उदर में गर्भस्थापन | कर्ण का जन्म और कुन्ती का विलाप | अधिरथ सूत और उसकी पत्नी राधा को बालक कर्ण की प्राप्ति | कर्ण की शिक्षा-दीक्षा और उसके पास इन्द्र का आगमन | कर्ण को इन्द्र से अमोघ शक्ति की प्राप्ति | इन्द्र द्वारा कर्ण से कवच-कुण्डल लेना
आरणेय पर्व
ब्राह्मण की अरणि एवं मन्थन काष्ठ विषयक प्रसंग | युधिष्ठिर द्वारा नकुल को जल लाने का आदेश | नकुल आदि चार भाइयों का सरोवर तट पर अचेत होना | यक्ष और युधिष्ठिर का संवाद | यक्ष और युधिष्ठिर का प्रश्नोत्तर | युधिष्ठिर के उत्तर से संतुष्ट यक्ष द्वारा चारों भाइयों को जीवित करना | यक्ष का धर्म के रूप में प्रकट होकर युधिष्ठिर को वरदान देना | युधिष्ठिर को महर्षि धौम्य द्वारा समझाया जाना | भीमसेन का उत्साह और पांडवों का परस्पर परामर्श

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