धूतारा जोगी एकर सूं हंसि बोल -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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उपालंभ


धूतारा जोगी एकर सूँ हँसि बोल ।। टेक ।।
जगत बदीत करी मनमोहन, कहा बजावत ढोल ।
अंग भभूति गले मृघछाला, तू जन गुढियाँ खोल ।
सदन सरोज बदन की सोभा,ऊभी जोऊँ कपोल ।
सेली नाद बभूत न बटवो, अजूँ मुनी मुख खोल ।
चढ़ती बैस नैण अणियाले, तूँ घरि घरि मत डोल ।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी, चेरी भई बिन मोल ।।62।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धूतारा = धूर्त, वंचक, छली। एकर सूँ = एक बार भी। बदीत = विदित, प्रसिद्ध। करी = की। गुढियाँ खेल = रहस्य का उद्घाटन करदे। म्रिघछाला = मृग चर्म। सदन = सद्यः का, नवीन, ताजा। सरोज = कमल। ऊभी = खडी खडी। जोऊँ = देखती हूँ। कपोल = मुख मंडल। सेली = योगियों के पहनने की चादर। नाद = योगियों के बजाने का सींग, बाजा। बभूत = विभूति, भस्म। बटवो = योगियों का बटुवा वा थैला। अँजू = अब भी। मुनी = मौनी। मुख खोल = बोल। चढ़ती वैस = युवावस्था। अणियाले = अनियारे, तीक्ष्ण। बिनमोल = मुफ्त में ही।

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