धाता (महाभारत संदर्भ)

  • धातुश्च वशमंवेति पाशैरिव नर: सित:।[1]

मनुष्य रस्सी से बँधे हुए की भाँति विधाता के वश में रहता है।

  • धात्रा कुसीदं सम्प्रदवर्तितम्।[2]

ब्याज का व्यवहार विधाता ने चलाया है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत58.18
  2. शांतिपर्व महाभारत259.23

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