धन्य धन्य अँखियाँ बड़भागिनि।
जिनि बिनु स्याम रहत नहिं नैकहुँ, कीन्ही बनै सुहागिनि।।
जिनकौ नही अंग तै टारत, निसिदिन दरसन पावै।
तिनकी सरि कहि कैसै कोई, जे हरि कै मन भावै।।
हमही तै ये भइ उजागर, अब हम पर रिस मानै।
'सूर' स्याम अति बिबस भए है, कैसे रहत लुभाने।।2406।।