धनि सुक मुनि भागवत बखान्यौ।
गुरु की कृपा भई जब पूरन, तब रसना कहि गान्यौ।।
धन्य स्याम बृंदाबन कौ सुख, सत माया तैं जान्यौ।
जौ रस-रास-रंग हरि कीन्ह्यौ, बेद नहीं ठहरान्यौ।।
सुर-नर-मुनि मोहित भए सबही, सिबहु समाधि भुलान्यौ।
सुरदास तहँ नैन बसाए, और न कहूँ परयान्यौ।।1173।।