(द्विज) बेगि धावहु कहि पठावहु, द्वारिका लौ जाइ।
कुंडिनपुर इक होत अजगुत, स्यार घेरी गाइ।।
दीन ह्वै करि करौ बिनती, पाती दीजहु जाइ।
रुक्म बीर विवाह ठान्यौ, ग़नै पिता न माइ।।
लगन सोधि विवाह थाप्यौ, उनत मंडप छाइ।
पैज करि सिसुपाल आयो, जरासंध सहाइ।।
हंस कौ मैं अस राख्यौ, काग कत मँठराइ।
गरुड़वाहन कृष्न आवहु, ‘सूर’ बलि बलि जाइ।। 4173।।