देख दशा प्रिय की -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग ईमन - तीन ताल


देख दशा प्रियकी, सुन उनकी व्यथापूर्ण वाणी निज कान।
हु‌ई परम व्याकुल श्रीराधा, टूटा स्वप्न हु‌आ मुख म्लान॥
स्वप्न स्मरण कर हु‌ई निरतिशय पीड़ित प्रेममयी राधा।
समझा उसने मैं ही हूँ बस, प्रियतमके सुखकी बाधा॥
हु‌आ कलेवर किपत कोमल, बही अश्रु‌ओंकी धारा।
छाया मन विषाद भारी अति, विस्मृत हु‌आ जगत्‌ सारा॥
लगी सोचने-’क्यों स्मृति होती मेरी उनके हृदय अपार ?
इसीलिये, मैं नहीं एक क्षण सकती उनको कभी बिसार॥
मेरी मनकी स्मृतिसे ही उनमें मेरी स्मृति उठती जाग।
इसीलिये उनके अन्तर में सदा धधकती रहती आग॥
जो मैं उन्हें भूल पाऊँ, जो करूँ नहीं उनको मैं याद।
तो मैं पाऊँ उनके सहज सुखी होनेका प्रिय संवाद’॥
यों निश्चय कर गयी अम्बिका-मन्दिरमें राधा तत्काल।
आर्द्र हो गये नेत्रोंके अविरत निर्झरसे अरुणिम गाल॥
करने लगी विनय गद्‌गद वाणीसे- ’हे अबा मा‌ई !
मेरे उरसे तुरत हटा दे प्रियतमकी स्मृति सुखदा‌ई॥
विरहानल जलता, पर पाती उस स्मृतिसे मैं सुख अनवद्य।
पर प्रियके सुख-हेतु हरण कर मैया ! तू मेरा सुख सद्य॥
प्रियतमकी मधुर स्मृति ही है मेरे प्राणोंका आधार।
चले जायँगे प्राण, भले, करते भी क्या रहकर बेकार ?॥
नहीं रहेंगे प्राण, रहेगा नहीं हृदय स्मृतिका आगार।
हो जायेंगे सुखी सदाके लिये श्रेष्ठतम प्राणाधार’॥
बोली नहीं अम्बिका कुछ, इतनेमें जगा दूसरा भाव-
हैं, कितना दुःखप्रद होगा प्रियको मेरा प्राणाभाव॥
पता नहीं, कैसी होगी उत्पन्न हृदयमें उनके हूक।
पता नहीं, कैसे बच पायेगा वह बिना हु‌ए दो टूक॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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