देखि सखि लोचन फिरत न फेरि -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग मालव




 
देखि सखि लोचन फिरत न फेरि।
अंगद मुकुट छुद्र छुद्रावलि जालावलि रहे घेरि।।
छवि बिलोल अँग अँग पर उपजति, लेति चहूँ दिसि हेरि।
बिसद दाम अभिराम सितासित अलि सावक कुल केरि।।
दुज दामिनि दमकत बिरचित चित चातक परनि परे रि।
अंबर धरनि धार आलबित बारिद मगन अरे रि।।
कोसत कोस नैन बिबि पंकज रीति तनत उर झेरि।
तन मन पलटि लियौ सखि मेरौ स्यौ दृग मूल अजेरि।।
'सूरदास' प्रभु चतुर सिरोमनि भए वस्य बिनु बेरि।। 86 ।।

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