देखि री नंद-नंदन-ओर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ



देखि री नंद-नंदन-ओर।
त्रास तैं तन त्रसित भए हरि, तकत आनन तोर।
बार बार डरात तोकौं, बदन बदनहिं थोर।
मुकुर-मुख, दोउ नैन ढारत, छनहिं छन छबि-छोर।
सजल चपल कनीनिका पल अरुन ऐसैं डोर ( ल )।
रस भरे अंबुजनि भीतर भ्रमत मानौं भौंर।
लकुट कैं डर देखि जैसे भए स्रोनित ओर।
लाइ उरहिं, बहाइ रिस जिय, तजहु प्रकृति निहोर।
सूर स्‍याम त्रिलोक की निधि, भलैंहि माखन-चोर।।364।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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