देखि दरस मन हरष भयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



देखि दरस मन हरष भयौ।
पूरन ब्रह्म सनातन तुमहीं, ब्रज अवतार लयौ।
श्रीमुख कह्यौ, अजहुँ लौं तुम नहिं, जान्यौ ब्रज अवतार?
और कौन जो तुम सौं बाँचै, सहस फननि की झार।
अनजानत अपराध किए प्रभु, राखि सरन मोहिं लेहु।
सूरदास धनि-धनि मेरे फन, चरण-कमल जहँ देहु।।558।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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