देखहु री हरि भोजन खात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


देखहु री हरि भोजन खात।
सहस भुजा धरि जेंवत हैं, इतहिं कहत गोपनि सौं बात।।
ललिता कहति देखि हो राधा, जौ तेरैं मन बात समाइ।
धन्य सबै गोकुल के बासी, संग रहत त्रिभुवन के राइ।।
जेंवत देखि उतहिं मुख कीनौ, अति आनँद गोकुल-नर नारि।
सूरदास-स्वामी सुख-सागर, गुन-आगर, नागर, दैतारि।।838।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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