देखत राम हँसे सुदामा कूँ -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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सुदासा


राग पीलू



देखत राम हँसे सुदामा कूँ, देखत राम हँसे ।।टेक।।
फाटी तो फूलडियाँ पाँव उभाणे, चलतैं चरण घसे ।
बालपणे का मित सदामाँ, अब क्यूँ दूर बसे।
कहा भावज ने भेंट पठाई’ तांदुल तीन पसे।
कित गई प्रभु मोरी टूटी टपरिया, हीरा मोती लाल कसे।
कित गई प्रभु मोरी गउअन बछिया, द्वारा बिच हंसती फसे।
मीरां के प्रभु हरि अबिनासी, सरणे तोरे बसे ।।188।।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राम = श्रीकृष्ण। सदामां कूँ = अपने बाल्यकाल के मित्र सुदामा को फाटी = फटी पुरानी। फूलडियां= जूतियां। उभाणे = उबेना, नगे। चलतैं = चलते समय। घसे = घिस जाते हैं। बालपन = बाल्यकाल। मित = मित्र, साथी। तांदुल = तन्दुल, चावल। पसे = पसर आधी अंजली। टपरिया = कुटिया। लाल = ऐ प्रकार का मणि। कसे = जड़े हुए हैं। द्वारा विच = द्वार पर। फसे = खड़े किये गये हैं। सरणे = शरण में।

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