देखत नंद कान्‍ह अति सोवत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिहागरौ



देखत नंद कान्‍ह अति सोवत।
भूखे भए आजु बन-भीतर, यह कहि-कहि मुख जोवत।
कह्यौ नहीं मानत काहू कौ, आपु हठी दोउ बीर।
बार-बार तनु पोंछत कर सौं, अतिहिं प्रेम की पीर।
सेज मंगाई लई तहँ अपनी, जहाँ स्‍याम बलराम।
सूरदास प्रभु के ढिग सोए, सँग पौढ़ी नंद-बाम।।516।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः