दूर रहें या पास -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

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राग भीमपलासी - ताल कहरवा


दूर रहें या पास, नित्य ही रहते एक साथ निर्बाध।
लहराता अनन्त सागर है, भरा प्रेम-रस-‌अमृत अगाध॥
उठती रहतीं विविध भाँति की ऊपर लहरें क्षुद्र-महान।
लोग देखकर उन्हें लगाते दूर-पास का मन अनुमान॥
हम दोनों नित एकरूप हैं, एक तत्त्व हैं नित संयोग-।
नित्य मिलन रहता अटूट, हो चाहे विप्रलभ-सम्भोग॥
नित्य मिलन, नित रस-‌आस्वादन, नित्य अतृप्ति, नित्य नव चाह।
मिलन विरहमय, विरह मिलनमय, लीलोदधि विचित्र अविगाह॥
मोद-विषाद, हास्य मृदु, रोदन, निपट निराशा, अति उत्साह।
परम मधुरतम, परम दिव्य, शुचि लीला रस-माधुरी-प्रवाह॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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