दूरि करहि बीना कर धरिबौ।
रथ थाक्यौ, मानौ मृग मोहे, नाहिंन होत चंद्र चौ ढरिबौ।।
बीतै जाहि सोइ पै जानै, कठिन सु प्रेम पास कौ परिबौ।
प्राननाथ संगहिं तैं बिछुरे, रहत न नैन नीर कौ झरिबौ।।
सीतल चद अगिन सम लागत, कहिए धीर कौन विधि धरिबौ।
‘सूर’ सु कमलनयन के बिछुरै, झूठौ सब जतननि कौ करिबौ।। 3357।।