दूती मन अवसेरि करै।
स्याम मनावन मोहिं पठाई, वह कतहूँ चितवै, न टरै।।
तब कहि उठी मान अति कीन्हौ, बहुत करी हरि, कहा करौ।
ऐसै बिनु वै नही जानिहै, अब कबहूँ जनि उनहिं ढरौ।।
वै आवति जमुना तट तै ब्रज, सखी एक यह बात कही।
सुनहु 'सूर' मै रहि न सकी गृह, कहा स्याम की प्रकृत सही।।2567।।