दुहुनि की प्रीति अनादि -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव स्वरूप माधुरी

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राग खमाज - तीन ताल


दुहुनि की प्रीति अनादि, अनोखी।
परम मधुर मूरति सनेह की, चिदानंदमय चोखी।
मन-बचननि ते परे दिब्य दंपति अनादि अति सोहनि।
पटतर नहिं को‌उ, भ‌ई, न हो‌इहै, जोड़ी मोहन-मोहनि॥
प्रेमी-प्रेमास्पद दो‌उ नित ही, नित्य एक, द्वै देही।
नित्य रास-रस-मत्त, मत्ततारहित सुचारु सनेही॥
ब्रज-निकुंज प्रगटे दो‌उ रसमय, रसिक जननि सुख-हेतु।
करत नित्य लीला तहँ सुललित लोकोत्तर रस-केतु॥
सेवक मोहि करो दो‌उ रसनिधि, करि अति नेह अकारन।
राखौ चरननि में नित अपुनें, करि बिष-बिषय-निबारन॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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